Monday, November 25, 2019

香港区议会选举民主派大胜 但僵局能被打破吗

香港2019区议会选举结果正式出炉。在逾71%破纪录投票率下,香港地区政治版图出现翻天覆地的变化,民主派合共取得388席,比以往增加263席,18区中有17区由民主派取得过议席,民主党一跃成为最大党,多区均出现多名年轻的政治素人当选。建制派只有59席,比上届大减240席,许多资深议员和大将均宣告败选。

香港民主派认为有关结果是“变相公投”,反映市民强烈希望政府回应示威浪潮的“五大诉求”,建制派则认为,区议会已不能只靠地区民生工作,会作出深切检讨。香港行政长官林郑月娥25日早晨表示,特区政府一定会虚心聆听市民的意见,并“认真反思”。

这是主权移交以来,民主派在区选中获得的最佳成绩,但如果按票数划分,民主派和建制派获得的票数约为57%比41%,与传统意义上两个阵营票数约“六四比”的状况类似,两者差距约40多万张选票。

虽然多个建制派大将落败,但其实质票数普遍有增幅,即保住基本票源外,这次示威也激发到一些原本投票意欲不高,但反对示威暴力及堵路的人支持。

示威浪潮激发了民主派的动员能力,在“和勇不分(即和平与激进示威者不割席)”、“兄弟爬山、各自努力”的前题下,票源没有大幅度分散,仅少数出现撞区令建制派获利的情况。下年举行的香港立法会选举,民主派能否团结一致,不像以往在多区出现竞争,以及能否继续在反修例风波后维持票源,是民主派面对的挑战。

区议会选举结果的历史性改变还意味着,民主派有可能在未来香港特首选举有更大话语权。在1200人组成可以选特首的香港选举委员会中,有117席是由区议员担任,过往因为建制派垄断区议会,这117席一直由建制派区议员担任,如果民主派最终夺得这百多席, 连同民主派本身在选举委员会中的340多席,如今可能在委员会有约460席,占超过三分之一。

中国全国港澳研究会副会长刘兆佳认为,今次结果不能够改变现时的政治僵局,就算民主派全取选委会议席,特首选举的主导权仍然在中央手中。他亦指出,2003年民主派也在区议会多区获得过半议席,但并没有影响建制派之后的立法会选举形势。

香港教育大学香港研究学院副教授方保恒说,在2012年特首选战中,当选人梁振英仅仅得689票当选,落败的唐英年获得285票,唐被视为与香港本地资本关系密切的候选人,且获得首富李嘉诚公开支持, 方保恒认为,如果民主派和本地资本势力结盟,就随时有足够票数自行决定特首人选。

“北京要避免出现这种‘政变’,恐怕只能重新统战本地资本……北京与本地代理人的关系从来复杂,香港仍是中共无法完全控制的境外地区,”方保恒说,“短期就看林郑月娥会否被快速撤换,由与本地资本关系紧密的人取代。”

香港示威者近月倾向更激进示威,曾发起“三罢(罢工、罢课、罢市)”大规模堵塞交通和暴力升级,香港中文大学政治与行政学系高级讲师蔡子强对BBC中文说,结果让北京和香港政府了解到,社会对运动支持度仍然相当高,并没有慢慢消退,中央和特区政府一直未能有效回应民意,只是强调“止暴制乱”,造成市民逆反,如果继续在这问题上采取“拖字诀”,是不能够解决问题。

他认为,民主派获得大多数议席,对“反修例运动”有正面影响,因为社运人士难以持续不上班、以义务性质投入运动,区议会提供了资源,包括议员薪水、办事处及地区网络等,可以用作支援运动的发展,但这亦意味着,民主派靠拢更激烈抗争路线,以往提倡温和妥协、与北京沟通的路线难以复再。

BBC记者乔纳森·赫德(Jonathan Head)分析认为,除非政府回应示威者诉求,示威浪潮将会继续,在选举翌日,仍然有人在香港中环高叫“五大诉求,缺一不可”的口号,而防暴警员似员不太肯定自己可以多强硬,亦有新当选的议员到访理工大学,去声援仍然被包围的示威者。

虽然特首林郑月娥说会认真反思市民的不满,但乔纳森·赫德说,要中国同意她才能够作出让步,北京可能会希望用一些没有那么争议的人取代她的职位。香港的反对派仍然遇到挑战,新一批的年轻区议员要回应本土议题,不是单纯追求民主,要思考如何更有效地合作去争取中央政府的让步。

Thursday, November 21, 2019

दुनिया में कहां लोग खाते हैं सबसे ज़्यादा चीनी

नामचीन मेडिकल जर्नल लैंसेट में ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़-2019 की एक स्टडी प्रकाशित हुई. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने को इसराइली मीडिया में काफी सेलिब्रेट किया गया.

दरअसल, इस स्टडी में दुनिया भर के 195 देशों के स्वास्थ्य आंकड़ों के विश्लेषण शामिल होते हैं. इस स्टडी से यह जाहिर हुआ है कि इसराइल दुनिया का वैसा देश है जहां खान पान से होने वाली मौतों की दर सबसे कम होती है.

इसके बाद दुनिया भर में ऐसे आलेख लिखे गए जिसमें लोगों को इसराइली लोगों की तरह खाने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

लेकिन अगर आप ऐसा करते हैं तो फिर दुनिया के किसी भी देश के नागरिक की तुलना में औसतन ज्यादा चीनी का इस्तेमाल करेंगे.

2018 में, इसराइल में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत 60 किलोग्राम से ज्यादा थी, यानी औसतन प्रति व्यक्ति रोजाना 165 ग्राम से ज्यादा चीनी.

बीबीसी ने इंटरनेशनल शुगर आर्गेनाइजेशन (आईएसओ) से जो आंकड़े हासिल किए हैं उसके मुताबिक यह दुनिया में सबसे ज्यादा चीनी की खपत है.

इसराइली नेशनल काउंसिल ऑफ डायबिटीज के प्रमुख और दुनिया भर में डायबिटीज़ के एक्सपर्ट के तौर पर जाने जाने वाले प्रोफेसर इटामार राज बताते हैं, "इसराइल में औसत वयस्क हर दिन 30 चम्मच से ज्यादा चीनी खाता है- यह आपदा से कम नहीं है."

सबसे ज्यादा चीनी खाने वाले पांच देशों में इसराइल के बाद मलेशिया, बारबेडोस, फिजी और ब्राजील का नंबर आता है.

वहीं दूसरी ओर, दुनिया भर में सबसे कम चीनी की खपत उत्तर कोरिया में है, जहां 2018 में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत 3.5 किलोग्राम थी. जबकि पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया में यह खपत प्रति व्यक्ति 30.6 किलोग्राम थी.

अमरीका में खान पान के चलते बीमारियों की समस्या भी हैं और वहां इसको लेकर काफी अध्ययन हुए हैं. लेकिन अमरीका में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत 31.1 किलोग्राम थी, इसके चलते अमरीका दुनिया भर में चीनी खपत करने वाले शीर्ष 20 देशों में भी शामिल नहीं है.

लेकिन आंकड़ों के हिसाब से चीनी की खपत सबसे ज्यादा भारत में होती है. 2018 में भारत में 25.39 मिलियन मीट्रिक टन चीनी की खपत हुई है, यह यूरोपीयन यूनियन के सभी देशों को मिलाकर चीनी की खपत से कहीं ज्यादा है.

कई बार खपत के आंकड़ों से यह पता नहीं चलता है कि लोग अपने खाने पीने में चीनी का कितना इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके अलावा यह भी समझने की जरूरत है कि जिसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ शुगर फ्री कहते हैं उसे तैयार करते वक्त ही उसमें चीनी मिला दी जाती है. इसके अलावा कुछ फूड में चीनी की मात्रा स्वभाविक तौर पर ज्यादा होती हैं, जैसे कि फलों का जूस.

इन सबको जोड़ दें तो दुनिया भर में चीनी की खपत लगातार बढ़ रही है. इंटरनेशनल शुगर आर्गेनाइजेशन के आंकड़ों के मुताबिक 2001 में चीनी की खपत 123.4 मिलियन मीट्रिक टन थी जो 2018 में बढ़कर 172.4 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गया है.

लेकिन सवाल यही है कि हम लोग ज्यादा चीनी क्यों खा रहे हैं?

इसकी एक प्रमुख वजह तो यही है कि परंपरागत तौर हमारे शरीर के लिए ऊर्जा के स्रोत के तौर पर चीनी सस्ता और सुलभ है.

अमरीकी फूड एंड एग्रीकल्चरल आर्गेनाइजेशन (एफएओ) के मुताबिक भारत में चीनी, "आम लोगों के इस्तेमाल का जरूरी अवयव और गरीबों के लिए ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत है."

हाल के दशक में देश भर में चीनी की खपत बढ़ी है. साठ के दशक में देश भर में साल भर में 2.6 मिलियन मिट्रिक टन चीनी की खपत होती थी जो नब्बे के दशक के मध्य में आते आते 13 मिलियन मिट्रिक टन तक बढ़ गया था.

बीते पांच दशकों में हमारे खान पान में प्रोसेड फूड की खपत भी दुनिया भर में बढ़ी है.

अमरीकी कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2012 के शुरुआती महिलों तक दुनिया भर में फूड प्रॉडक्ट की बिक्री में 77 प्रतिशत हिस्सा प्रोस्सेड फूड का है.

प्रोस्सेड फूड का सबसे अहम अवयव होता है चीनी. कई बार स्वाद और कई बार प्रॉडक्ट के इस्तेमाल की अवधि को बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है.

दुनिया भर के कई स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक में वैश्विक मोटापा महामारी की सबसे अहम वजह यह है कि शुगर की खपत रही है.